मै समय हूँ। आज जब मैं मानव
जाती को देख रहा हूँ। तो व्यथीत होता हुं क्या ये वही मानव जाती है जो कभी भगवान
महावीर के अनुयायी थे? हाँ, मेरी नजर उसी
भारत की भुमी पर जा रही है। जहा भगवान महावीर निर्वाण के समय को दिपावली का त्योहार मनाते
है। जहा लोग अपनी सरकार खुद बनाते और चलाते है। मैने तो काल में बहुत सी सरकारे आती हुई और जाती हुई देखी है। पर इसी काल में मैने जो देखा है,
जब आप लोग जानोगे, तो आप लोग भी बोलोगे की मै चूप क्यू हूँ? पर मै तो समय हूँ। मेरा काम सिर्फ देखना होता है।
शायद आप देख भी नही पाओगे। ये इतना नन्ना सा बालक.... कोरोना,. परदेसीयोंके गोदी मे बैठ कर भारत मे आ धमका
है। सारे जग मे हाहाकार मचाते हुए जिसने अपने कदम अब भारत की पवित्र भूमी में रख दिये है।
भगवान महावीर के इस पावन भूमी मे अपना साम्राज्य जमाने आया हुआ ये छोटासा जीव.. हाँ, जीवही तो है यह! बहुत ही अल्पसमय मे अपने हाथ पैर जमाने में कामयाब हो चुका है!
बरसौ बाद आज मैने
मानव को अपने घरो में बंद होते हुए देखा है।
जैन दर्शन ये कहलाता है सबकुछ कर्म सिद्धांत के हिसाब से ही घटित होता है। चाहे अच्छा हो या बुरा हो। कर्म ही तो अच्छा बुरा फल देते रहते है। फिर जब आज अशुभ फल मिल रहे है। तो इसका मतलब मानवजातीने जरूर कुछ अशुभ,काम कीये होंगे।
तभी तो करोना जैसी बिमारी का सामना करना पड रहा है। मेरा ईशारा तो उन की तरफ है जिन्होंने अपनी भुख मिटाने के लिए बेचारे पशु
पक्षीयो को काट कर खाना जायज समझा। मेरा ईशारा उन की तरफ भी है जिन्होंने सालों से
फलते फूलते पेड़ पौधे काट कर बड़े बड़े घर बंगले बनवा दिये। मेरा ईशारा उन की तरफ
भी है जिन्होंने बेचारे पशुपक्षीयो को मारकर उनके शरिर के अंश से दवाईया बनाई और
ईस्तमाल की।
और जानने वाली बात ये भी है
की ज्ञाना वरणीय कर्म के उदय से कोरोना जैसी बिमारी का हमे कुछ भी इलाज पता नही चल रहा है। वैसे तो
ये
पृथ्वीवासी खुद को, आधुनिक कहलाते है। तभी तो इनकी मूर्खता पर थोडासा
हस
लेता हूँ।
आज ये सवाल खुद से ही किजिये की क्या आज हममे वही विनयशीलता
दिखायी देती है जो भगवान श्रीराम में दिखायी देती थी? क्या हम उतने ही विनयशिल है
जितना एकलव्य था अपने गुरू के प्रती? तो क्या अभी भी आपको लगता है की ज्ञानावरनीय कर्म
आपको अछुता रह जायेगा?
जानने वाली बात है इस बिमारी ने जिन मंदिर कोही बंद करवा
दिया। इस का मूल तो दर्शना वरणीय कर्म मे दिखाई देता है। जरूर हमने धर्मविरोधी कार्य किये होंगे जिस का ये
फल
दिखाई देता है।
क्या आपने कभी सोचा है की जब आप दुनीयाभर के लोग मनोरंजन के
नाम पर हिंसा, मायाचार को बढावा देने वाली फील्मे देखते और टीव्ही देखते है। जिनमंदीर मे जाने के समय बिस्तर पर निद्रा के आधीन
दिखाई देते है। तो क्या अभी भी आपको लगता है की दर्शनावरनीय कर्म आपको अछुता रह जायेगा?
जैन धर्म के पालन करणे से
पापास्त्रव घटित हो जाते है और नमोकार मंत्र के
जाप करणेसे कर्म की निर्जरा होती है।
आनेवाले समय में ये पाप कर्म का उदय तो शायद क्षीण हो
जायेगा। और हमारे अच्छे कर्मों के फलस्वरुप हमें कोरोना का इलाज पता चल जाएगा। इसलिए
हमें उन गुरुओं का आदर सम्मान करना चाहिए जिनकी प्रेरणा से आप लोग अच्छे कर्म कर
पा रहे है।
जैन सिद्धांत मे हर एक
प्रश्न का उत्तर मिल जाता है। कोरोना से होने वाले मृत्यु का कारण आयु कर्म होता है। करोना तो
एक
निमित्तमात्र
है। तभी तो कोरोना होने के बाद भी सौबरस की दादी बच जाती है पर पैतीस बरस के
नवजवान
की
मृत्यु हो जाती है। आयु कर्म खतम हो जाने पर मृत्यू तो अटल होती है। पर क्या कभी अपने दिमाख पर जोर देकर सोचा है? अपने आप ही समझ आ जायेगा की
ये सारा खेल तो खुद के ही कर्मो का लेखाजोखा होता है।
व्यवहारनय की
द्रुष्टी से मास्क पहनना, दुरीया बना के चलना, हर समय छना हुआ पानी ही पीना, समय
समय पर हाथ धोते रहना, इन सब बातों का
पालन तो करना ही चाहीये। पर किसी भी बिमारी को मुल से खतम करना है तो उस के मुल
कारण तक जाना जरूरी होता है। कर्म सिद्धांत के मार्ग से मैने आपको वहा तक पहुचाने
की कोशिश जरुर की है।
मै तो समय हूँ। मै तो
केवल छह द्रव्यो मे से एक काल द्रव्य हूँ।
मैं इन सारी घटनाओं का प्रत्यक्षदर्शी गवाह हूँ। और आगे भी रहुंगा।
मेरे लिये मानव और करोना दोनों
ही
जीवद्रव्य ही तो है। इसलिये मै किसी एक का पक्ष नही लेना चाहता।
बस यही प्रार्थना करता हूँ।
रोग-मरी
दुर्भिक्ष न फैले प्रजा शांति से जिया करे
परम
अहिंसा धर्म जगत में फैल सर्वहित किया करे। ।।
फैले
प्रेम परस्पर जग में मोह दूर पर रहा करे
अप्रिय-कटुक-कठोर
शब्द नहिं कोई मुख से कहा करे,
बनकर सब
युगवीर हृदय से देशोन्नति-रत रहा करें
वस्तु-स्वरूप
विचार खुशी से सब दुख संकट सहा करें। ।।
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